Published 2025-12-04
Keywords
- खिलौने,
- सीखने की प्रक्रिया,
- खिलौना-आधारित शिक्षणशास्त्र,
- श्रीजनात्मकता,
- संज्ञानात्मक विकास
How to Cite
Abstract
खिलौने बच्चों को जोड़-तोड़ प्रक्रिया में संलग्न करते हैं, उनकी कल्पनाशक्ति को बढ़ावा देते हैं साथ ही, उनके संज्ञानात्मक विकास, सामाजिक व भावनात्मक कौशल को उत्तेजित करते हैं और सूक्ष्म व गामक कौशलों को बढ़ाते हैं। अध्यापकों एवं अभिभावकों द्वारा पठन-पाठन में खिलौनों की उपयोगिता को पहचानने और उनका उपयोग करने से बच्चों में श्रीजनात्मकता विकसित होती है एवं नए अनुभव होते हैं, जो उन्हें समग्र विकास की ओर अग्रेषित करते हैं। यह लेख दिल्ली सरकार द्वारा संचालित स्कूलों से लिए उदाहरणों पर आधारित है। इस लेख में लेखक द्वारा अधिगम-शिक्षण में खिलौना-आधारित शिक्षणशास्त्र के उपयोग की जाँच-पड़ताल एवं अवलोकन किया गया है और इसमें पाया कि सामान्य तथा विशिष्ट अर्थों में इसके उपयोग के कई लाभ हैं। हालाँकि, ऐसे कई मिथक हैं, जो खिलौना-आधारित शिक्षणशास्त्र से जुड़े हुए हैं जैसे कि ‘खिलौने सीखने में बाधक हैं’, ‘वे कक्षा वातावरण के लिए उपयुक्त नहीं हैं, क्योंकि उनका कोई शैक्षणिक मलू्य नहीं होता है’, ये मूल्यवान शिक्षण समय बर्बाद करते हैं।’ लेखक द्वारा प्राप्त जानकारी एवं विवरणों पर गौर करते हुए तथा साक्ष्य आधारित वास्तविकता का अध्ययन किया गया तो ज्ञात हुआ कि खिलौने सीखने की प्रक्रिया का अभिन्न अंग हैं। इन्हें शिक्षकों और विद्यार्थियों के लिए कई लाभों के साथ औपचारिक कक्षाओ में प्रभावी ढंग से शामिल किया जा सकता है। इस लेख में खिलौना-आधारित शिक्षणशास्त्र को क्रियान्वित करने में आने वाली चुनौतियों तथा उनके अपेक्षित समाधानों का भी उल्लेख किया गया है।