Published 2025-07-30
Keywords
- शिक्षा और भाषा,
- परंपरागत शिक्षक-केंद्रित
How to Cite
Abstract
शिक्षा और भाषा के मुद्दों पर काम करने के कारण अक्सर विद्यालयों में जाना होता है। बच्चों के साथ बैठना और उनसे बातें करना भी मेरे काम में शामिल होता है। तो विद्यालयों में भ्रमण के दौरान स्पष्ट रूप से यह देखने में आया कि शिक्षण में नवाचारों के प्रयोग और बाल-केंद्रित प्रयासों को गति देने के आग्रहों के बाद भी शिक्षकों के अध्यापन के तौर-तरीके न केवल परंपरागत शिक्षक-केंद्रित, भय एवं दबाव प्रधान हैं, बल्कि कक्षाओं का वातावरण बोझिल, अरुचिकर और नीरस बनाए रखने के लिए जिम्मेदार भी हैं। कुछ स्वप्रेरित शिक्षकों को छोड़कर अभी भी शिक्षकों के एक बड़े हिस्से द्वारा ऐसे कोई सकारात्मक प्रयास नहीं किए जा रहे हैं, जिससे बच्चों को विद्यालय अपनी सपनीली जगह लगे। हम बच्चों को यह एहसास नहीं दिला पाए हैं कि विद्यालय वह रचनात्मक स्थान है जहाँ वे अपने सपनों की उड़ान भर सकते हैं, कल्पना को मूर्त रूप प्रदान कर सकते हैं। विद्यालय उस फलक की तरह नहीं उभर पाया जहाँ बच्चे मौलिक चिंतन को अभिव्यक्त कर सकें और विचारों का आदान-प्रदान कर सकें। कक्षा में प्रस्तुत विषय पर उनके अभिमत देने के लिए कोई जगह नहीं बन सकी है। आज भी बच्चों के दिलो-दिमाग में शिक्षक हावी हैं। विद्यालय उसे अपना-सा लगे और यह तभी संभव होगा जब शिक्षकों को हर बच्चा अपना-सा लगे।