Vol. 39 No. 2-3 (2015): प्राथमिक शिक्षक
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ख्‍वाबों के जहाज़

शारदा कुमारी
वरिष्ठ प्रवक्ता, मंडल शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान

Published 2025-06-17

How to Cite

कुमारी श. (2025). ख्‍वाबों के जहाज़. प्राथमिक शिक्षक, 39(2-3), पृ. 14-17. http://ejournals.ncert.gov.in/index.php/pp/article/view/4262

Abstract

औपचारिक शिक्षा की छोटी मगर सबसे महत्वपूर्ण इकाई है विद्यालय। यह बच्चों को एक ऐसी जीवंत उर्वरक शक्ति प्रदान करने के उद्देश्य से अपनी विद्यमानता को तार्किक ठहराती है जो उन्हें अपनी नैसर्गिक क्षमताओं को पूरी तरह से प्रस्फुटित होने के निरंतर मौके देती रहे। इस कथन का अर्थ यह हुआ कि विद्यालय सभी बच्चों के लिए असीम चाहत का स्थान बने। उनके मन की भीतरी तह तक उन्हें विद्यालय जाने के लिए उकसाती रहे और विद्यालय में दिन बिताने के बाद जब वे घर लौटें तो विद्यालय में दिन भर की धमाचौकड़ी उन्हें गदगद करती रहे। क्या ऐसा हो पा रहा है? अवलोकन और अनुभव इस कठोर सत्य को दर्ज करते हैं कि जब तक बच्चे विद्यालय नहीं जाते, उनके भीतर तीव्र उत्कंठा समाई रहती है कि कब वे पाँच वर्ष के हों (औपचारिक प्राथमिक विद्यालय में प्रवेश की आयु) और कब वे विद्यालय जाएँ।