जुलाई के दूसरे पखवाड़े की बहुत सी अलसाई सी सुबह थी। हवा न जाने कहां जाकर छिप बैठी थी। हवा की अनुपस्थिति का लाभ उठाते हुए मौसम पर अपना एक छत्र राज जमाए उमस बैठी थी। ऐसे उमस भरे दिन में दिल्ली के नगर निगम की पाठशाला में जाना कभी भी नहीं सुहाया। हालांकि पाठशाला में जाना और बच्चों से बतियाना मुझे हमेशा से बहुत ही अच्छा लगता है पर बीते कुछ दिनों से न जाने मन क्यों कतराने लगा है।