Vol. 46 No. 1 (2022): प्राथमिक शिक्षक
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सुनहरी की पहिया कुर्सी

भारती कौशिक
एसोसिएट प्रोफ़ेसर, सी. आई.ई.टी., रा.शै.अ.प्र.प. नवी दिल्ली

Published 2025-10-24

How to Cite

कौशिक भ. (2025). सुनहरी की पहिया कुर्सी. प्राथमिक शिक्षक, 46(1), p.48-53. https://ejournals.ncert.gov.in/index.php/pp/article/view/4901

Abstract

प्रत्येक मनुष्य की अपनी कुछ विशिष्टताएँ होती हैं। प्रकृति ने प्रत्येक मनुष्य को एक जैसा तो बनाया है परंतु कार्यों को करने की क्षमता सभी में भिन्न है, भिन्नता ही विशिष्टता है। हमारे आसपास, हमारे बीच कुछ ऐसे व्यक्ति हैं जिनमें सभी आम मनुष्यों की तरह ही भावनाएँ एवं संवेदनाएँ हैं जो हमारी ही तरह सोचते और व्यवहार करते हैं, परंतु उनकी आवश्यकताएँ विशिष्ट परिस्थितियों के चलते भिन्न होती हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि वे परिस्थितियों का सामना नहीं कर सकते, बस उन्हें उचित अवसरों और सुविधाओं को प्रदान करने भर की देर है। परिस्थितियों को देखना और उसका आकलन करना केवल हमारे नज़रिये पर निर्भर करता है। सुनहरी की कहानी ऐसी ही कुछ विशिष्ट आवश्यकताओं पर ध्यान आकर्षित करती है कि यदि हम अपने आसपास के वातावरण को सुविधाजनक और सुगम्य बनाएँ तो प्रत्येक के लिए सहजता संवर्धन होगी। जिस तरह एक पौधे को उचित वातावरण और विकास करने की अनुकूल परिस्थितियाँ प्रदान करने पर वह एक मजबूत, छायादार वृक्ष बनता है, वही स्थिति बालमन की भी होती है। परिस्थितियों के आधार पर उत्पन्न विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को यदि उनके आसपास का सहज-सुलभ वातावरण और उनकी आवश्यकतानुरूप अवसर दिया जाए तो वे भी स्वावलंबी बनेंगे और अपनी प्रतिभा और क्षमता का सही दिशा में उपयोग कर सकेंगे। ऐसे बच्चों को दया या करुणाभाव की आवश्यकता नहीं अपितु उनके लिए परिस्थितियों को सहज और अवसरों को सुलभ करने की आवश्यकता है। उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने और उसको मुखरित करने के लिए केवल और केवल अवसरों की आवश्यकता है। ऐसा तभी संभव है जब हम विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की जरूरतों के विषय में जागरूक हों और इस दिशा में उचित प्रयास करें व अपने दृष्टिकोण को नयी दृष्टि से देखें।