Published 2025-10-24
Keywords
- पाठ्यक्रम,
- नैतिक और सांस्कृतिक विकास,
- जीवन में नैतिक मूल्यों
How to Cite
Abstract
कविताएँ बहुत कम शब्दों में अपनी बात कहने का सामर्थ्य रखती हैं। उस पर भी वे कविताएँ जो पाठ्यक्रम में लगाई गई हों उनका अपना अलग ही दायित्व और कर्तव्य माना जाना चाहिए। कवि की बात जिस तरह से वह कहना चाहता है उस तरह से बच्चों के मन तक साधारण से साधारण शैली में पहुँच जानी चाहिए। यह कार्य शिक्षक का है। शिक्षक को चाहिए कि वह अपने विद्यार्थियों तक हर कविता का मर्म स्पष्ट शब्दों और आम भाषा में पहुंचा दें और लेखक का मनोरथ पूरा कर दें। प्रस्तुत लेख के माध्यम से कक्षा छठी की पाठ्यपुस्तक की तीन कविताओं केदारनाथ अग्रवाल की 'वह चिड़िया जो', शमशेर बहादुर सिंह की 'चांद से थोड़ी गप्पे' और सुभद्रा कुमारी चौहान की 'झाँसी की रानी' को कक्षा में पढ़ाने के मनोवैज्ञानिक आधार और उद्देश्यों पर गंभीर चिंतन किया गया है। ये कविताएँ बालमन को शिक्षक के माध्यम से किस प्रकार प्रभावित करके उनके जीवन में नैतिक मूल्यों, प्रकृति प्रेम, सामाजिक चेतना, और राष्ट्रीय चेतना का विकास कर सकती हैं, इस ओर प्राथमिक शिक्षकों का ध्यान केंद्रित करने का प्रयत्न किया गया है। लेख का उद्देश्य बाल पाठकों में कविता के प्रति रुचि उत्पन्न कर रोचकता जागृत करना है।
बालमन कोरा कागज़ होता है उस पर जो बातें लिख दी जाती हैं वे अपनी अमिट छाप छोड़ देती है। यूँ तो कविता को भवानी प्रसाद मिश्र ने बुनी हुई रस्सी माना है। इसमें जितना भाव लिपटा हुआ है इसे कह पाना एक कठिन प्रक्रिया है, क्योंकि इसे जितना खोलते जाएँगे उतने ही इसके रेशे खुलते जाएँगे। या यूं कहें कि उसके रेशों में वह भाव खुलने की वजह से बिखर जाएँगे। उसकी परत दर परत खोलने का काम न करके उसकी एक मूल भाव से व्याख्या करने का काम एक शिक्षक ही कर सकता है। शिक्षक ही वह सीढ़ी है जो कवि की बात उसका रहस्य या यूं कहें कि उस कविता या गीत का मर्म समझाने का कार्य कर अपने विद्यार्थियों का नैतिक और सांस्कृतिक विकास कर उन्हें मेहनत की प्रेरणा के रास्ते से सफलता के मुकाम पर पहुंचाते हैं।