Vol. 36 No. 04 (2016): भारतीय आधुनिक शिक्षा
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महामना पंडित मदन मोहन मालवीय शिक्षा - दर्शन की प्रसंगीकत

Published 2025-01-03

Keywords

  • शिक्षा का उद्देश्य,
  • समन्वय और समग्र विकास

How to Cite

राय म. (2025). महामना पंडित मदन मोहन मालवीय शिक्षा - दर्शन की प्रसंगीकत . भारतीय आधुनिक शिक्षा, 36(04), p. 38-47. http://ejournals.ncert.gov.in/index.php/bas/article/view/3054

Abstract

यह लेख महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के शिक्षा-दर्शन की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालता है। पंडित मालवीय भारतीय शिक्षा के महान विचारक, समाज सुधारक और राष्ट्रीय नेतृत्व के प्रतीक थे। उनका शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण भारतीय संस्कृति, नैतिक मूल्यों और आधुनिक शिक्षा के समन्वय पर आधारित था।

पंडित मदन मोहन मालवीय का मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान देना नहीं, बल्कि व्यक्तित्व निर्माण, सामाजिक जागरूकता, और राष्ट्रीयता की भावना को जागृत करना है। उनका विचार था कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए, जो न केवल शैक्षिक दृष्टिकोण से मजबूत हो, बल्कि मानवता, धर्म, और नैतिकता की दिशा में भी मार्गदर्शन करें।

लेख में यह भी बताया गया है कि मालवीय जी ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना करके भारतीय शिक्षा की एक नई दिशा दिखाई, जहाँ पारंपरिक और आधुनिक शिक्षा पद्धतियों का समन्वय किया गया। उनके शिक्षा दर्शन में, भारतीय संस्कृति, विज्ञान, कला, और सामाजिक उत्थान के विचारों को महत्व दिया गया। उनके अनुसार शिक्षा को समाज के हर वर्ग तक पहुँचाना चाहिए, ताकि देश का समग्र विकास संभव हो सके।

आज के संदर्भ में, पंडित मालवीय के शिक्षा-दर्शन की प्रासंगिकता मानवता, राष्ट्रीय एकता, और समाज में समानता के निर्माण के रूप में देखी जा सकती है। उनका यह दृष्टिकोण आज भी हमें समाजसेवा, शिक्षा में सुधार, और सामाजिक न्याय की दिशा में प्रेरित करता है।