खंड 46 No. 1 (2022): प्राथमिक शिक्षक
Articles

आलोचनात्मक शिक्षणशास्त्र के निहितार्थ

शशि रंजन
पीएच. डी. शोधार्थी, शिक्षा विभाग, शिक्षा विद्यापीठ, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र

प्रकाशित 2025-10-24

सार

शिक्षा स्कूल की इमारत या कक्षा की तुलना में कहीं अधिक व्यापक है। कक्षाओं को समाज के लोकतांत्रिक शिष्टाचार से अलग नहीं किया जा सकता है। वे लघु सामाजिक व्यवस्था है जहाँ विद्यार्थियों को अपने सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संबंध का पता लगाना चाहिए। एक स्कूल जो आलोचनात्मक शिक्षण को लागू करता है जिसका प्रमुख उद्देश्य अपने विद्यार्थियों में स्वायत्तता, संवेदनशीलता और आलोचनात्मक सोच को विकसित करना होता है। इस शिक्षणशास्त्र का उद्देश्य यह देखना है कि कोई विद्यार्थी किसी अवधारणा को समझने और उसे वास्तविक जीवन की स्थितियों से जोड़ने में कितना सक्षम है। उत्पीड़क एवं उत्पीड़ितों के मध्य समानता एवं असमानता की खाई को पाटने के लिए आलोचनात्मक शिक्षणशास्त्र को स्कूली वातावरण, कक्षा-कक्ष में शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया, स्कूल की संस्कृति एवं पाठ्यक्रम में आवश्यकतानुसार अपनाया जाना चाहिए। यह शिक्षणशास्त्र निरंतर प्रतिक्रिया, संवाद, समालोचना और परिवर्तन की अनुमति देता है। एक कक्षा लोकतांत्रिक तब होती है जब वहाँ उपस्थित सभी विद्यार्थियों को समस्या समाधान करने वाले समुदाय के सदस्यों को समानरूप से अवसर प्रदान करती है। यह शिक्षणशास्त्र अन्य शिक्षणशास्त्रों की तरह केवल एक मूक दर्शक नहीं है। आलोचनात्मक शिक्षणशास्त्रियों का मानना है कि ज्ञान कभी भी हस्तांतरित नहीं किया जा सकता है वरन् ज्ञान हमेशा प्राप्य (Negotiable) और आंशिक होता है। बाहर की दुनिया में क्या होता है इसका कक्षा में क्या प्रभाव पड़ता है और कक्षा में हम जो कुछ भी (हम क्या पढ़ाते हैं, कैसे पढ़ाते हैं, हम किस सामग्री का उपयोग करते हैं, हम विद्यार्थियों का आकलन कैसे करते हैं, हम उन्हें कैसे प्रतिक्रिया देते हैं) करते हैं उसका व्यापक प्रभाव विद्यार्थियों पर पड़ता है। प्रस्तुत लेख में आलोचनात्मक शिक्षणशास्त्र एवं उसके शैक्षिक निहितार्थ के अंतर्गत स्कूलों की भूमिका, संवाद, लोकतांत्रिक वातावरण, बिंदुओं पर विश्लेषणात्मक एवं समीक्षात्मक वर्णन करने का प्रयास किया गया है।