प्रकाशित 2025-10-24
संकेत शब्द
- खिलौनों का पिटारा
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सार
बच्चे तो आखिर बच्चे ही हैं। ये सिर्फ़ में नहीं, आप भी कहते हैं। तब भला उन्हें बच्चे ही क्यों नहीं रहने देते? खासकर तब, जब उनकी बच्चे बने रहने की उम्र होती है। उन्हें सधी हुई जबान में फ़रटि से बोलने वाले तोते या एक संकेत पर काम करने वाली मशीन क्यों बनाना चाहते हैं? जब उनके खुले रहने के दिन शुरू होते हैं, तभी हम उन्हें बाँधना शुरू कर देते हैं। उनके खेल आपने क्यों छीन लिए? उनकी तोतली जबान आपने क्यों ग़ायब कर दी? उनकी शरारतें, चंचलता, मासूमियत, सवाल, सपने, जिज्ञासा, उदारता आदि कहाँ बंद करके रख दिया आपने? न उनके साथी-संगी रहे (आखिर गलत साथ से वह बिगड़ जो सकता है) और न ही उसके खिलौनों का पिटारा। घास का मैदान उन्हें मिला नहीं, मिट्टी में उन्हें लोटने आप देंगे नहीं। क्या आपको ये बर्दाश्त है कि वह दो साल के हो जाएँ और कुछ खेलगीत, किस्से-कहानियाँ सुना पाएँ, आखिर अब उसके स्कूल जाने का वक्त जो आने वाला है। वहाँ बिना कुछ ज्ञान के दाखिला कैसे होगा? (वैसे एक बात मेरी समझ से परे है कि बिना विद्यालय दर्शन के समझ कहाँ? ज्ञान व समझ तो शायद कक्षा में ही मिलता है)