प्रकाशित 2025-10-24
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सार
तमाम कानूनों के होते हुए भी शारिरिक दंड का प्रचलन विद्यालयों में कम नहीं हुआ है। हाल की घटनाएँ इन कानूनों की विफलता को सिद्ध करती हैं। दंड के सभी रूपों, जैसे शारीरिक दंड, व्यंग्यात्मक भाषा व नकारात्मक पुनर्बलन के बारे में लोगों में स्पष्टता की कमी महसूस की जाती है। अनुशासन कायम करने के नाम पर कॉर्पोरल पनिशमेंट विद्यालय में कई रूपों में प्रस्तुत होती रहती है और इसे कक्षा में चुप रहने से जोड़कर देखा जाता है। अतः अनुशासनिक कृत्यों की संकल्पना में और स्पष्टता जरूरी है। साथ ही, इसके अत्यधिक नकारात्मक प्रभावों को देखते हुए दंड को किसी भी स्थिति और रूप में मान्यता न मिले। इस संदर्भ में विद्यार्थी, शिक्षकों, प्रधानाध्यापकों से व्यापक चर्चा के बाद यह निष्कर्ष प्राप्त हुए कि विद्यार्थी, शिक्षक सहित इस व्यवस्था के सभी हितधारकों को एक साथ मिलकर रणनीति तय करने की आवश्यकता है। इतना तो स्पष्ट है कि केवल शिक्षकों को जिम्मेवार ठहराने से स्थिति नहीं सुधरने वाली।