प्रकाशित 2025-10-24
संकेत शब्द
- शिक्षा की महती भूमिका,
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति,
- आधुनिक शिक्षा व्यवस्था
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सार
किसी भी राष्ट्र के विकास में शिक्षा की महती भूमिका होती है। भारत जैसे विविधतापूर्ण तथा चहुसांस्कृतिक देश में स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत शिक्षा में गुणात्मक परिवर्तन एवं परिमार्जन करने के लिए भारत सरकार द्वारा समय-समय पर विभिन्न आयोगों, समितियों तथा नीतियों का गठन एवं निर्माण किया गया। स्वतंत्र भारत में सर्वप्रथम डी. दौलत सिंह कोठारी की अध्यक्षता में वर्ष 1968 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति प्रस्तावित की गड़ी इसमें शिक्षा में गुणवत्तापूर्ण अभिवृद्धि के लिए कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए। इसके बाद वर्ष 1986 में पुनः राष्ट्रीय शिक्षा नीति, तत्पश्चात् 1992 में संशोधित राष्ट्रीय शिक्षा नीति द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न सुझावों को प्रस्तावित किया गया। वर्ष 2020 में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति को प्रस्तुत किया गया। इसमें अर्वाचीन भारतीय ज्ञान परंपरा के महत्व को स्वीकार किया गया है। इसके साथ ही इसमें मानव निर्मात्री शिक्षा, शैक्षिक मूल्यों, मानकों, विश्वासों, आदशों तथा विचारों को केंद्र में रखते हुए शिक्षा व्यवस्था में गुणवत्तापूर्ण परिवर्तन करने हेतु अनेक सुझावों को प्रस्तुत किया गया है। आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में में अर्जाचीन ज्ञान परंपरा की निहिर्तता उच्च कोटि के दार्शनिक, योगी तथा महान शिक्षाशास्त्री स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक दर्शन एवं कार्यों में प्रतिबिंबित होती है। इस लेख में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में दिए गए सुझावों को स्वामी विवेकानंद के मानव निर्मात्री शिक्षा दर्शन के आलोक में अन्वेषित किया गया है। अन्वेषण इस ओर संकेत करता है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के विभिन्न अध्यायों में वर्णित शिक्षा संबंधी सुझावों पर स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक वर्शन तथा शैक्षिक सिद्धांतों का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।