प्रकाशित 2025-10-24
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सार
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 के अनुसार, "स्कूली गणित का दर्शन विद्यार्थियों को गणित से भयभीत करने के बजाय उसका आनंद उठाने की ओर इशारा करता है"। गणित को ऐसा विषय माना गया है जिस पर विद्यार्थी बात कर सके जिसका संप्रेषण हो सके, जिस पर आपस में चर्चा हो, अमूर्त संरचनाओं को देख एवं समझ सकें। गणित शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया बोलते ही मस्तिष्क में सबसे पहले एक चित्र बनने लगता है जिसमें एक कक्षा-कक्ष, विद्यार्थी, पाठ्यचर्या, पाठ्यक्रम, शिक्षक, पढ़ने-पढ़ाने का तरीका और मूल्यांकन आदि आता है। मूल्यांकन में भी यदि केवल गणित मूल्यांकन की बात करें तो मात्र पेन-पेपर टेस्ट। आज के शिक्षा के संरचनावादी युग में भी हम खुद को पेन-पेपर टेस्ट से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं जबकि संरचनावादी उपागम तो इस अवधारणा पर टिका हुआ है कि विद्यार्थी अपने ज्ञान का अपनी गति तथा क्षमता के अनुसार अध्यापक की मदद से स्वयं ही निर्माण करें। जब ज्ञान निर्माण में ही इतनी विविधता है तो मूल्यांकन परंपरागत तरीकों से ही कैसे संभव है? यह अपने आपमें विचारणीय है। इस शोध में गणित शिक्षण तथा मूल्यांकन को संरचनावादी उपागम से देखने का प्रयास किया गया है। शोध में पाया गया कि गणित मेला विद्यार्थी को कमरे की चारदीवारी से बाहर निकलकर सीखने-सिखाने के अवसर प्रदान कर रहा है। गणित शिक्षण तथा मूल्यांकन दोनों आयामों को देखने के लिए गणित मेले को शिक्षण प्रविधि के रूप में प्रयोग किया गया है। शोध कार्य में दिल्ली के 2 सरकारी विद्यालय जो उत्तर-पश्चिम 'ब' जिले में स्थित हैं उनकी कक्षा 6 के विद्यार्थियों जिनकी संख्या 50 रही जिसमें छात्र और छात्राओं को समान रूप से सोधेश्य प्रतिचयन (पर्पसिव सैंपलिंग) के अनुसार लिया गया। शिक्षकों (गणित) को भी पर्पसिव सैंपलिंग से चयनित किया गया जिनकी संख्या 20 रही और शिक्षकों में भी पुरुष और महिला शिक्षक समान रूप से चयनित किए गए। शोध कार्य मूलतः मात्रात्मक है परंतु इसमें गुणात्मकता का भी पुट है। शोध कार्य को करने के लिए मूलतः निरीक्षण विधि (ऑब्जर्वेशन मेथड) जिसमें विद्यार्थियों द्वारा भरी गई ऑब्जर्वेशन शीट का विश्लेषण करना, फोकस ग्रुप डिस्कशन जिसमें शिक्षक और विद्यार्थी को मेले से पूर्व और मेले के उपरांत तथा साक्षात्कार जिसमें विद्यार्थी और शिक्षक दोनों को शामिल किया गया है। साक्षात्कार और फोकस ग्रुप डिस्कशन शोध कार्य को ट्रियंगुलेट करने के लिए किया गया ताकि शोध कार्य को वैधता दी जा सके। शोध में पाया गया कि गणित मेला विद्यार्थी को कमरे की चारदीवारी से बाहर निकलकर सीखने-सिखाने के अवसर प्रदान कर रहा है। साथ-ही-साथ यहाँ यह भी देखा गया कि असेसमेंट और लर्निंग साथ-साथ चल रहे हैं। यहाँ विद्यार्थी को कुछ भी याद नहीं करना और न ही पर्चे पर कोई टेस्ट देना है। तो यह निसंदेह मूल्यांकन के लिए एक कारगर प्रविधि साबित हो सकती है, गणितीय मेले की एक बहुत बड़ी उपलब्धि यह भी रही कि इसमें अधिगमकर्ता (लर्नर) ने निष्क्रिय न होकर सक्रिय अधिगमकर्ता की भूमिका निभायी।