खंड 44 No. 4 (2020): प्राथमिक शिक्षक
Articles

जेंडर समावेशन के प्रश्न और हिंदी की पाठ्यपुस्तकें

मो. फैसल
शोधार्थी (पीएच.डी.), आई.ए.एस.ई., शिक्षा-संस्थान, जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली
ऐमन सैयद
विद्यार्थी, एम.एड. (2017–2019), शैक्षिक अध्ययन विभाग, शिक्षा-संस्थान, जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली

प्रकाशित 2025-09-02

संकेत शब्द

  • जेंडर संवेदनशीलता,
  • लिंग आधारित भेदभाव,
  • जेंडर समावेशन

सार

जेंडर एक सामाजिक अवधारणा है। इसमें स्त्री , पुरुष एवं ट्रांसजेंडर सभी शामिल हैं। विगत कुछ वर्षों से जेंडर संवेदनशीलता का मुद्दा अत्यंत ज्वलंत मुद्दा बनकर उभरा है। इसका प्रमुख कारण यह है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद निश्चय ही स्त्रियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में बदलाव तो आया है, उनकी साक्षरता दर भी अवश्य बड़ी है लेकिन इन बदलावों के बावजूद आज भी महिलाओं को लेकर हमारी सामाजिक मान्यताओं, परंपराओं व सोच में अपेक्षित परिवर्तन नहीं आया है। लिंग आधारित भेदभाव जनित रूढ़िग्रस्त मानसिकता में बदलाव लाना एक चुनौती है, जिसका सामना निश्चय ही शिक्षा व्यवस्था में सुनियोजित बदलाव लाकर किया जा सकता है। इसी संदर्भ में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में भी यह सुझाव दिया गया है कि महिलाओं की स्थिति में सुधार हेतु शिक्षा को एक एजेंट के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए। चूंकि, पाठ्यपुस्तकें औपचारिक शिक्षा का एक अभिन्न अंग होती हैं, अतः यह आवश्यक है कि पाठ्यपुस्तकों में सम्मिलित सामग्री ज्ञानवर्धक, रोचक होने के साथ-साथ सामाजिक भेदों का नाश करने वाली व लैंगिक समानता के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण विकसित करने वाली हों। इसी संदर्भ में राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 में कहा गया है-"किसी भी ऐतिहासिक व समकालीन विषय पर चर्चा के दौरान जेंडर संबंधित सरोकारों को संबोधित करना जरूरी है। इसके लिए सामाजिक विज्ञान व अन्य विषयों में प्रचलित पितृसत्तात्मक मान्यताओं में बदलाव की आवश्यकता है।" अतः प्रस्तुत शोध आलेख में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् द्वारा निर्मित प्राथमिक स्तर की हिंदी विषय की पाठ्यपुस्तकों (रिमझिम श्रृंखला) का जेंडर समावेशन या संवेदनशीलता के संदर्भ में सारगर्भित विश्लेषण प्रस्तुत किया जा रहा है।