Published 2025-10-24
Keywords
- शिक्षा प्रणाली,
- शिक्षक और शिक्षार्थी,
- मार्गदर्शक
How to Cite
Abstract
वैसे तो गुरु या शिक्षक का कोई रूप नहीं होता। वह किसी भी रूप में हो सकता है अर्थात् जिससे हम कुछ सीखते हैं या जो हमारा मार्गदर्शन करता है, वह ही हमारा गुरु कहलाता है। हमारा शिक्षक गुरु मानव और किताबों आदि के रूप में भी हो सकता है। किताबों में दी गई जानकारियाँ, कहानियाँ या घटनाएँ, आदि भी हमारे लिए मार्गदर्शक और गुरु का कम कर देती हैं, जैसे मणिपुर के नौगपोक काकचिंग गाँव के एक गरीब परिवार में जन्म लेने वाली मीराबाई चानू की जिंदगी का लक्ष्य आठवीं कक्षा की किताब में दी गई वेटलिफ्टर कुंज़रानी देवी के एक ज़िक्र ने बदल दिया और आज वे एक प्रसिद्ध वेटलिफ्टर हैं। परंतु इस लेख में हम ऐसे शिक्षक की बात कर रहे हैं जो जीवित है, मानवीय गुणों से संपन्न है। जो अक्षर ज्ञान कराकर हमारे अंदर ज्ञान व समझ का संचार करता है। प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष व औपचारिक रूप से शिक्षा प्रणाली के माध्यम से अपने शिक्षार्थियों के संपर्क में रहता है। यह बात सार्वभौमिक सत्य है कि शिक्षक और शिक्षार्थी का संबंध एक दूसरे के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। परंतु कुछ समय से शिक्षक का शिक्षार्थी पर और शिक्षार्थी का शिक्षक पर से विश्वास, स्नेह, लगाव, सम्मान, आदरभाव आदि कहीं कम होता जा रहा है। ऐसा क्यों हो रहा है? इस लेख में शिक्षक और शिक्षार्थी के संबंधों की महत्ता की समीक्षा करने के साथ-साथ उन कारकों पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है जिनके कारण आज इनके मध्य पारस्परिक संबंधों की दूरी बढ़ रही है और दूरी को कम करने के राष्ट्रीय व राज्य सरकार (दिल्ली) द्वारा किए गए उपायों पर भी चर्चा की गई है।