Published 2025-07-30
Keywords
- भारतीय शिक्षा के इतिहास,
- आधुनिक शिक्षा पद्धति
How to Cite
Abstract
भारत देश आरंभ से ही विदेशी शासकों एवं व्यापारियों के लिए व्यापार, वैभव व संपदा के नज़रिए से आकर्षण का केंद्र रहा है और इसी कारणवश आरंभ से ही भारत पर लगातार आक्रमण होते रहे हैं। आर्यों के भारत आगमन के पश्चात इस्लाम, ईसाई, पुर्तगाली आदि ने व्यापार के अतिरिक्त भारत पर राजनीतिक और सांस्कृतिक दोनों रूपों से अपना कब्ज़ा जमाया। अपने धर्म प्रचार हेतु सभी प्रकार के उपायों को अंजाम दिया। प्रत्येक शासक अपने साथ अपने देश की संस्कृति, भाषा एवं शिक्षा सिद्धांतों को भारत लाता गया और अपने राज-काज व उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु इन्हें समाज में लागू करता गया। भारत की बहुमूल्य संपदाओं एवं व्यापार की अपार संभावनाओं से आकर्षित होकर, 17वीं शताब्दी से भारत में यूरोपीय व्यापारी आना आरंभ हुए। इन यूरोपीय व्यापारियों के आने से पूर्व भारत में देशी शिक्षा प्रचलित थी। किंतु इस देशी शिक्षा में कई प्रकार के दोष भी थे, जिनमें से सबसे बड़ा दोष था आर्थिक विपन्नता। अनेक आक्रमणों से देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। और इसी कारणवश शिक्षा की भी अवनति हो गई। इन यूरोपीय व्यापारियों के साथ-साथ यहाँ के अंग्रेज़, डच, पुर्तगाली व फ्रांसीसी मिशनरियों का मुख्य उद्देश्य यहाँ के निवासियों को ईसाई धर्म में दीक्षित करना था। उनके इस उद्देश्य की चाह कि किसी भी प्रकार की जाए, पर इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए शिक्षा को साधन बनाकर, उन्होंने इस देश में जो कार्य किए, वे भारतीय शिक्षा के इतिहास में सदा स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेंगे। उन्होंने इस देश में न केवल आधुनिक शिक्षा पद्धति को प्रचलित किया वरन स्वयं शिक्षा संस्थाओं का संचालन करके भारतीयों के समक्ष एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत भी किया।