समग्र मानव के निर्माण में शिक्षक-छात्र अनुपात की भूमिका-कृशमूर्ति तथा टेगोर के संदर्भित विचारों की प्रसंगीता
प्रकाशित 2025-01-06
संकेत शब्द
- समग्र मानव निर्माण,
- नैतिक शिक्षा,
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सार
समग्र मानव के निर्माण में शिक्षक-छात्र अनुपात की भूमिका पर स्वामी विद्यानंद कृशमूर्ति और रवींद्रनाथ टेगोर के विचार अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। दोनों महापुरुषों ने शिक्षा के प्रति अपने दृष्टिकोण में यह स्पष्ट किया कि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान का संचार नहीं, बल्कि मानवता, नैतिकता, और व्यक्तिगत विकास को भी बढ़ावा देना चाहिए।
स्वामी कृशमूर्ति का मानना था कि एक शिक्षक को छात्र के व्यक्तिगत और मानसिक विकास के प्रति गहरी समझ होनी चाहिए, और इसके लिए शिक्षक-छात्र अनुपात संतुलित होना आवश्यक है। उनके अनुसार, जब शिक्षक की संख्या पर्याप्त होती है और एक शिक्षक को कम संख्या में छात्रों पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर मिलता है, तो वह हर छात्र की व्यक्तित्व विशेषताओं, गुणों और दोषों को सही ढंग से समझ सकता है और उसे सशक्त बना सकता है। उन्होंने शिक्षा को केवल ज्ञान की प्रक्रिया से हटकर एक जीवनदृष्टि के रूप में देखा, जिसमें हर छात्र का समग्र विकास आवश्यक था।